World Social Justice Day 2021 – जानिए विश्व सामाजिक न्याय दिवस का इतिहास

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World Social Justice Day 2021 : विश्व भर में 20 फरवरी को “विश्व सामाजिक न्याय दिवस”(World Social Justice Day 2021) मनाया जाता है. हर किसी व्यक्ति को, बिना किसी भेदभाव  (Partiality) के, समान (Equal) रूप से, न्याय (Justice) मिल सके और सामाजिक न्याय को बढ़ावा मिल सके, इस उद्देश्य (Purpose) के साथ इस दिन को मनाया जाता है. इस दिन के लिए इस वर्ष की थीम (Theme) रखी गयी है “A Call for Social Justice in the Digital Economy” यानी “डिजिटल अर्थव्यवस्था में सामाजिक न्याय के लिए एक बुलावा”. पहली बार वर्ष 2009 में इस दिन को “वर्ल्ड सोशल जस्टिस डे” के रूप में मनाया गया था |

World Social Justice Day 2021

बिना किसी भेदभाव (Partiality) के, समान (Equal) रूप से, हर किसी व्यक्ति को, न्याय (Justice) मिल सके और सामाजिक न्याय को बढ़ावा मिल सके, इस उद्देश्य (Purpose) के साथ “विश्व सामाजिक न्याय दिवस” को मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है, हर किसी व्यक्ति को, बिना किसी भेदभाव के समान रूप से न्याय दिलाना और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना. “विश्व सामाजिक न्याय दिवस”  के इस उद्देश्य को पूरा करने और लोगों के बीच इस दिन के महत्व के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए संयुक्त राष्ट्र (United Nations) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम कार्यालय (International Labor Office) एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं.

World Social Justice Day 2021

ये है उद्देश्य

इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है, हर किसी व्यक्ति को, बिना किसी भेदभाव के समान रूप से न्याय दिलाना और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना. “विश्व सामाजिक न्याय दिवस”  के इस उद्देश्य को पूरा करने और लोगों के बीच इस दिन के महत्व के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए संयुक्त राष्ट्र (United Nations) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम कार्यालय (International Labor Office) एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं.

हर वर्ष “वर्ल्ड सोशल जस्टिस डे”  के लिए थीम निर्धारित की जाती है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस वर्ष के लिए इस दिन की थीम रखी गयी है “A Call for Social Justice in the Digital Economy” यानी “डिजिटल अर्थव्यवस्था में सामाजिक न्याय के लिए एक बुलावा”.

ये है इतिहास  

“विश्व सामाजिक न्याय दिवस” की स्थापना 26 नवंबर 2007 को हुई थी, जब संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) ने ये घोषणा की थी कि महासभा के 63वें सत्र से 20 फरवरी का दिन “वर्ल्ड सोशल जस्टिस डे” के रूप में मनाया जायेगा. पहली बार इस दिवस को 2009 में विश्व स्तर पर मनाया गया था.

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समान रूप से अधिकार दिलाने के लिए ये सब भी हैं कार्यरत

पूरे विश्व के ज्यादातर देशों में बहुत सारी प्रथाएं ऐसी हैं, जहां समान रूप से न्याय मिल पाना आज भी सम्भव नहीं है. भारत की बात करें तो यहां भी बहुत सी प्रथाएं ऐसी हैं जहां लिंग,जाति और आर्थिक स्तर के आधार पर समान रूप से न्याय मिल पाना मुश्किल है. इसके चलते लोगों के अधिकारों का हनन भी हो रहा है. ऐसे लोगों को समानता का अधिकार मिल सके, इसके लिए राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, बाल विकास आयोग के साथ कई अन्य गैर सरकारी संगठन भी अपने-अपने स्तर पर कार्य कर रहे हैं.

समाज में फैली भेदभाव और असमानता की वजह से कई बार हालात इतने बुरे हो जाते हैं कि मानवाधिकारों का हनन भी होने लगता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने 20 फ़रवरी को विश्व सामाजिक न्याय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। सन 2009 से इस दिवस को पूरे विश्व में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों के माध्यम से मनाया जाता है। रोटी, कपड़ा, मकान, सुरक्षा, चिकित्सा, अशिक्षा, ग़रीबी, बहिष्कार और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से निपटने के प्रयासों को बढ़ावा देने की ज़रूरत को पहचानने के लिए विश्व सामाजिक न्याय दिवस मनाने की शुरूआत की गयी है।

सामाजिक न्याय का अर्थ

समाज में हर तबका एक अलग महत्व रखता है। कई बार समाज की संरचना इस प्रकार होती है कि आर्थिक स्तर पर भेदभाव हो ही जाता है। ऐसे में न्यायिक व्यवस्था पर भी इसका असर पड़े, यह सही बात नहीं है। समाज में फैली असमानता और भेदभाव से सामाजिक न्याय की मांग और तेज हो जाती है। सामाजिक न्याय के बारे में कार्य और उस पर विचार तो बहुत पहले से शुरू हो गया था, लेकिन दुर्भाग्य से अभी भी विश्व के कई लोगों के लिए सामाजिक न्याय सपना बना हुआ है। सामाजिक न्याय का अर्थ निकालना बेहद मुश्किल कार्य है। सामाजिक न्याय का मतलब समाज के सभी वर्गों को एक समान विकास और विकास के मौकों को उपलब्ध कराना है। सामाजिक न्याय यह सुनिश्चित करता है कि समाज का कोई भी शख्स वर्ग, वर्ण या जाति की वजह से विकास की दौड़ में पीछे न रह जाए। यह तभी संभव हो सकता है जब समाज से भेदभाव को हटाया जाए।

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भारत में सामाजिक न्याय

अन्तर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष (यूनिसेफ) की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में तीन करोड़ बच्चे युद्ध या अन्य कारणों से पैदा होने वाले संकटों की वजह से शिक्षा नहीं ले पाते हैं। हाल के एक सर्वेक्षण के अनुसार मध्य अफ्रीकी गणराज्य में लगभग एक तिहाई स्कूलों को या तो गोलियों से छलनी किया गया था या आग लगाई गई अथवा लूटा या सशस्त्र समूहों द्वारा कब्जा कर लिया गया। यूनिसेफ के वैश्विक शिक्षा कार्यक्रम के प्रमुख जोसफिन बॉर्न, ने कहा- “आपात स्थिति के माध्यम से रहने वाले बच्चों के लिए, शिक्षा एक जीवन रेखा है।”

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